हर रोज़ ही कोई नई खता चाहिएइस दिल को दर्द का पता चाहिए
कब तक होगा झूठा खैर मकदम
मुझे अब बेरुख़ी का अता* चाहिए
अच्छे लगते ही नहीं सूनी मंज़िलें
काँटों से ही भरा रास्ता चाहिए
मेरा इश्क़ सबसे निभ नहीं पाएगा
सो हमनबा भी कोई सस्ता चाहिए
जिंदगी बोझिल है अब इस कदर
मुझे मेरी मौत का फरिश्ता चाहिए
*अता-दान
सलिल सरोज